बस्तर के लोगों को चुप कराने के लिए रघु मिडियामी की गिरफ्तारी : पीयूसीएल
पीयूसीएल राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए), रायपुर द्वारा 27.02.2025 को मूलवासी बचाओ मंच के पूर्व अध्यक्ष रघु मिडियामी की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करता है। उन्हें माओवादियों के इशारे पर पुलिस कैंपों, सड़कों और पुलों के निर्माण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के झूठे आरोपों पर गिरफ्तार किया गया है। लगभग 4 महीने पहले, 30 अक्टूबर 2024 को, छत्तीसगढ़ सरकार ने भी छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम (छ.वि.ज.सु.अ), 2005 के दमनकारी प्रावधानों के तहत मूलवासी बचाओ मंच को पुलिस कैंपों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने और सार्वजनिक अशांति उत्पन्न कराने के लिए प्रतिबंधित किया था।
रघु मिडियामी, 24, मूलवासी बचाओ मंच (एमबीएम) के संस्थापकों में से एक हैं, जिसे सिल्गेर विरोध प्रदर्शन के समय गठित किया गया था, जब पुलिस फायरिंग में 4 ग्रामीण मारे गए थे। एमबीएम ने पिछले 3 वर्षों के दौरान बस्तर संभाग में लगभग 30 लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनो का नेतृत्व किया था, जब इसे प्रतिबंधित किया गया। रघु मिडियामी समेत बस्तर के कई मजबूत युवा साथी एमबीएम के बैनर तले और स्वतंत्र रूप से, संविधान द्वारा दिए गए उपकरणों और विधियों का उपयोग करते हुए, बस्तर में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के हनन को उजागर करने और इनके सही क्रियान्वयन के लिए कार्यरत थे।
रघु मिडियामी को अपराध संख्या RC-02/2023/निया/RPR के तहत गिरफ्तार किया गया है और उन्हें छ.वि.ज.सु.अ की धारा 8(1)(3)(5) और विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 10, 13(1), (2) और 40 के तहत आरोपित किया गया है। ये धाराएं किसी गैरकानूनी संगठन की सदस्यता और प्रबंधन, गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देना या उकसाना, और एक आतंकवादी संगठन के लिए धन जुटाने से संबंधित हैं। दो एमबीएम सदस्यों, गजेंद्र माड़वी और लक्ष्मण कुंजाम को पहले ही मई 2025 में इसी अपराध संख्या के तहत गिरफ्तार किया गया था, जब उन्हें 2000 रुपये के नोटों में 6 लाख रुपये के साथ कथित रूप से पकड़ा गया था, जिन्हें पुलिस के अनुसार, एक माओवादी कमांडर ने विभिन्न बैंक खातों में जमा करने के लिए दिया था।
रघु मिडियामी की गिरफ्तारी के लिए एनआईए द्वारा दिए गए कारण उनके मूलवासी बचाओ मंच की स्थापना में भूमिका, पुलिस कैंपों और सड़कों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करना, पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ों का आरोप लगाना, और माओवादियों और उनके समर्थकों के बीच कड़ी के रूप में कार्य करना हैं। ये एनआईए की अडिग धारणा को दर्शाते हैं कि बस्तर में सारे के सारे विरोध प्रदर्शन केवल माओवादियों के इशारे पर होते हैं, और बस्तर के लोगों को अपनी पहल और विश्वास के आधार पर सोचने और कार्य करने की क्षमता है ही नहीं। विरोध प्रदर्शन आयोजित करने और सरकारी नीतियों या कार्रवाइयों पर सवाल उठाने में स्वाभाविक रूप से कुछ भी अवैध नहीं है, लेकिन एनआईए द्वारा इन आरोपों को माओवादियों द्वारा प्रेरित बताने से सभी विरोध प्रदर्शन आपराधिक बन जाते हैं, और सरकार को किसी भी बुनियादी मुद्दे को संबोधित करने से छूट मिल जाती है।
लगातार अधिकारियों द्वारा लगाए गए निराधार आरोपों के बावजूद कि एमबीएम विकासात्मक गतिविधियों का विरोध कर रहा था और उन्हें बाधित कर रहा था - रघु मिडियामी जैसे लोग वास्तव में इसलिए संघर्ष कर रहे थे कि ग्रामीणों से उनकी आवश्यकताओं के बारे में परामर्श किए जाने का अधिकार सुरक्षित रखा जाए। कई लोग जो चौड़ी सड़कों और कैंपों की स्थापना का विरोध कर रहे थे, जिनसे केवल कॉरपोरेट्स के लिए संसाधनों की लूट होती है - इसके बजाय उन्होंने अपने गांवों में अस्पतालों और स्कूलों के निर्माण की मांग की थी।
पीयूसीएल छग मानता है कि किसी जनता को सरकार विरोधी या विकास विरोधी नहीं कहा जा सकता जब वह केवल अधिकारियों से संवैधानिक प्रक्रियाओं के पालन की मांग कर रहे हैं। यह भी अत्यंत चिंताजनक है कि छ.वि.ज.सु.अ और यूएपीए जैसे कठोर कानून, जो सरकार को देश के खिलाफ हिंसक खतरों का मुकाबला करने के लिए विशेष शक्तियां देते हैं, उन्हें रघु मिडियामी जैसे लोगों के खिलाफ उपयोग किया जा रहा है, जो लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण रूप से अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग उठा रहे हैं।
पीयूसीएल मांग करता है कि रघु मिडियामी के खिलाफ झूठा मामला वापस लिया जाए, मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध हटाया जाए और एमबीएम के अन्य युवा कार्यकर्ताओं जैसे सुनीता पोट्टम, गजेंद्र मड़ावी, शंकर और अन्य को भी तुरंत रिहा किया जाए।
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