संवाददाता - पवन कुमार गुप्ता
नई दिल्ली
डॉ. राजेश गुप्ता की ‘‘1857 की क्रांति: हरियाणा के वैश्य समाज का योगदान’’ पुस्तक का लोकार्पण
वैश्य समाज केवल अर्थव्यवस्था का नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति और बलिदान की परंपरा का वाहक रहा है : अशोक बुवानीवाला
सोनीपत 22 नवंबर- वैश्य समाज ने हमेशा राष्ट्र निर्माण, व्यापार, शिक्षा, सामाजिक एकता और धार्मिक संरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इन सबके साथ यह सत्य भी ज्यादा प्रसारित होना चाहिए कि स्वतंत्रता संग्राम में भी हमारे पूर्वजों ने अपनी संपत्ति, समय और जीवन सब कुछ देश की आजादी के लिए समर्पित किया था। ये उद्गार अग्रवाल वैश्य समाज के प्रदेश अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने आज स्थानीय हिंदू कन्या सी.सै. स्कूल में डॉ. राजेश गुप्ता द्वारा रचित स्वतंत्रता संग्राम में वैश्य समाज के योगदान पर शोधपरक पुस्तक ‘‘1857 की क्रांति: हरियाणा के वैश्य समाज का योगदान’’ के दूसरे संस्करण के लोकार्पण समारोह में कही। बुवानीवाला ने कहा कि हम अक्सर सुनते आए हैं कि वैश्य समाज केवल व्यापार, दान और धार्मिक गतिविधियों में अग्रणी रहा है। किंतु आज प्रस्तुत यह शोधपरक पुस्तक हम सबको यह एहसास दिलाती है कि हमारा समाज केवल अर्थव्यवस्था का नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति और बलिदान की परंपरा का वाहक रहा है।
डॉ. राजेश गुप्ता को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि डॉ. गुप्ता ने एक पुस्तक नहीं लिखी बल्कि उन्होंने इतिहास का संरक्षण किया, भूले-बिसरे बलिदानियों को पहचान दी और वैश्य समाज की आत्मा को पुनर्जागृत किया है। वैश्य समाज के इतिहास, उसकी जड़ों और स्वतंत्रता संघर्ष में निभाई गई भूमिका को शोध आधारित तथ्यों के साथ प्रस्तुत करती हुई यह पुस्तक नई पीढ़ी के शोधार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगी। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक अपने पहले संस्करण की भांति स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वैश्य समाज गौरवपूर्ण इतिहास को प्रकाश में लाने का कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि आजादी के इतने साल बाद भी इतिहास की धूल में छुपें वैश्य समाज की इन महान विभूतियों के संघर्ष को दस्तावेजीकरण की आवश्यकता थी जिसे डॉ. राजेश गुप्ता की इन पुस्तकों के माध्यम से समाज की अगली पीढ़ी को अपने पूर्वजों को जानने-पहचानने के साथ प्रेरणा और सही दिशा देने का काम करेगी। बुवानीवाला ने कहा कि आज का दिन केवल एक पुस्तक के लोकार्पण का अवसर नहीं है, बल्कि यह वह क्षण है जब हम अपने गौरवपूर्ण इतिहास को पुनर्जीवित करने, अपनी जड़ों को चिह्नित करने और आने वाली पीढिय़ों को उनकी पहचान का बोध कराने के संकल्प के साथ एकत्र हुए हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास की किताबों में कई बार हमारा उल्लेख बहुत संक्षिप्त या कभी-कभी बिल्कुल भी नहीं मिलता। लेकिन सच यह है कि अनेकों वैश्य परिवारों ने अपनी धन-संपत्ति, प्रतिष्ठा, व्यापार ही नहीं, बल्कि अपने बेटे, अपने घर और अपनी शांति देश की स्वतंत्रता के लिए न्योछावर की। 1857 की क्रांति में वैश्य समाज ने विद्रोह को आर्थिक आधार दिया, सेनाओं को संसाधन उपलब्ध कराए, और क्रांतिकारियों को संरक्षण दिया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए हांसी के लाला हुकुम चंद जैन के बलिदान को याद करते हुए बुवानीवाला ने कहा कि वैश्य समाज ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दी है। यह तथ्य कि हमारा समाज केवल दान और समाजसेवा तक सीमित रहा—आधी सच्चाई है। सत्य यह है कि हम वह समाज हैं जिसने धर्म, व्यापार और राष्ट्रधर्म तीनों का निर्वाह सर्वोच्च स्तर पर किया।
इस मौके पर पुस्तक के सम्पादक डॉ. जय भगवान सिंगला ने कहा कि इतिहास को स्मरण करना ही नहीं—उस पर गर्व करना भी जरूरी है। आज हम देखते हैं कि नई पीढ़ी मोबाइल, सोशल मीडिया और आधुनिकता में व्यस्त है। लेकिन अगर उसकी जड़ों में इतिहास का गर्व भरा जाए, तो वह केवल सफल ही नहीं, बल्कि चरित्रवान, राष्ट्रभक्त और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने वाला नागरिक बनता है। यह पुस्तक सिर्फ किताब नहीं एक विरासत है, एक दर्पण है, एक मार्गदर्शन है। मुझे प्रसन्नता है कि हमने आज समाज के उस गौरवपूर्ण पक्ष को दुनिया के सामने रखने की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ाया है।
पुस्तक के लेखक डॉ. राजेश गुप्ता ने इस मौके पर पधारें सभी अतिथियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि यह इस पुस्तक के शोधकार्य वर्षों के संकलन, ऐतिहासिक अभिलेखों और समाज के वरिष्ठ जनों की मौखिक जानकारी पर आधारित है। उन्होंने कहा 1857 की क्रांति में वैश्य समाज ने केवल धन नहीं दिया बल्कि अपने घर, परिवार और जीवन की आहुति भी दी। आज उनका इतिहास लिखते समय गर्व होता है कि हम उस वंश के हिस्से हैं जिसने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा।
इस मौके पर डीक्रस्ट मुरथल यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर डॉ. राजेंद्र कुमार अनायत, डॉ. डीसी शर्मा, डॉ. मधुकांत बंसल, डॉ. पीएम गौड, अधिवक्ता अजय आदित्य, टीकाराम मित्तल, पवन अग्रवाल, अशोक गर्ग, सीए पवन गुप्ता, दयाराम जैन, राजीव अग्रवाल, राजेश मित्तल, जयकुमार जैन, अनुज मित्तल, रवि नंदन सहित अनेक विद्वान, विदुषी, साहित्यकार व शिक्षाविद मौजूद रहें।
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