भारतीय जन की ओर से फ़िलिस्तीन एक समर्थन में और इज़रायली नरसंहार के ख़िलाफ़ एक देशव्यापी विरोध प्रदर्शन

संवाददाता - पवन कुमार गुप्ता 
नई दिल्ली 

5 अक्टूबर को फ़िलिस्तीनी के समर्थन में एकजुट भारतीय जन की ओर से फ़िलिस्तीन एक समर्थन में और इज़रायली नरसंहार के ख़िलाफ़ एक देशव्यापी विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया।
 यह विरोध प्रदर्शन इज़रायली ताक़तों द्वारा सुमुद फ्लोटिला जहाज के लोगों के अमानवीय तरीक़े से बन्धक बनाये जाने के ख़िलाफ़ भी किया गया। यह विरोध प्रदर्शन देश के अलग-अलग शहरों मसलन हैदराबाद, पटना, विशाखापट्टन, विजयवाड़ा, पुणे, और नई दिल्ली में किया गया। दिल्ली में लोग जन्तर-मन्तर पर इकट्ठा हुए। फ़िलिस्तीनी मुक्ति के संघर्ष के समर्थन में अलग-अलग कलाकार, लेखक, पत्रकार, छात्र, प्रोफ़ेसर और इंसाफ़पसन्द लोगों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। इस प्रदर्शन में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी, दिशा छात्र संगठन, प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग और नौजवान भारत सभा जैसे राजनीतिक दल और छात्र संगठन मौजूद थे।

प्रदर्शन के दौरान अलग-अलग कलाकृतियाँ, प्लेकार्ड और पोस्टरों के ज़रिये गाज़ा में जारी नरसंहार को दिखाया गया। जन्तर-मन्तर पर गीतों और नारों की गूंज ने भारत के हुक्मरानों को यह सन्देश पहुँचा दिया कि भारत की अवाम फ़िलिस्तीनी जनता के ख़ून से सने उन व्यापारिक सौदों कको ख़ारिज करती है, और हम संघर्षरत फ़िलीस्तीनी जनता के साथ खड़े हैं।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से शिवानी कौल ने ग़ाज़ा में पिछले दो वर्षों से चल रहे नरसंहार पर बात की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ज़ायनवादी इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनी जनता पर थोपा गया यह युद्ध यहूदियों और मुसलमानों के बीच कोई धार्मिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह फ़िलिस्तीनी जनता का मुक्ति-संघर्ष है, जिनपर पर हत्यारे ज़ायनवादी उपनिवेशवादी इज़रायली राज्य ने अपने हितों के लिए पश्चिमी साम्राज्यवादी ताक़तों के दम पर बेरहमी से कब्ज़ा कर लिया है।

आगे उन्होंने यह बात की कि इस नरसंहार ने तथाकथित “विश्व नेताओं” का असली चेहरा सामने ला दिया है, जो लगातार फ़िलिस्तीन के बच्चों और जनता की सामूहिक हत्या को जायज़ ठहराने में लगा रहे हैं। उन्होंने भारत की मौजूदा स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा कि एक समय में हमारा देश 1948 में फ़िलिस्तीन के समर्थन में खड़ा हुआ था और इज़रायल जैसे देश के गठन के खिलाफ़ वोट दिया था, आज वही देश ज़ायनवादी इज़रायल के साथ खुले तौर पर गठजोड़ कर रहा है।

फ़ासीवादी मोदी सरकार को इससे न सिर्फ़ व्यापारिक सौदों के ज़रिये फ़ायदा मिलता है, बल्कि वह इस संघर्ष को धार्मिक टकराव के रूप में पेशकर और इज़रायल के पक्ष में खड़ी होकर अपने मुस्लिम-विरोधी फ़ासीवादी प्रचार को भी मज़बूत करने का काम करती है।

शिवानी ने आगे बात रखी कि आज फ़िलिस्तीन के समर्थन में खड़ा होना दुनिया में और हमारे अपने देश में हो रहे हर अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ खड़ा होना है। उन्होंने कहा कि केवल एक जनान्दोलन जो आज यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों में आग की तरह फैल रहा है, वही इस नरसंहार को समाप्त कर सकता है। एक इंसाफपसन्द इंसान के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भारत में भी ऐसा ही जुझारू जनान्दोलन खड़ा करें।

आगे अलग-अलग वक्ताओं ने अपनी बात रखी। चिरांशु (एक राजनीतिक कार्यकर्ता) ने ज़ायनवाद के इतिहास पर बात की और बताया कि 1948 से पहले इज़रायल नाम का कोई देश अस्तित्व में नहीं था। जिस भूमि के टुकड़े को मात्र एक कागज़ पर हस्ताक्षर करके ज़ायनवादियों ताक़तों को सौंप दिया गया, वहाँ पहले से ही विभिन्न धर्मों के फ़िलिस्तीनी लोग बसते थे। उन्होंने फ़िलिस्तीन के इतिहास और उसपर हुए इज़रायली क़ब्ज़े के इतिहास के बारे में भी बात रखी।

आगे उन्होंने भारत की वर्तमान स्थिति और इस मुद्दे पर हमारे देश की चुप्पी के कारणों पर बात की। उन्होंने कहा कि फ़ासीवादी और ज़ायनवादी शक्तियों के इस अपवित्र गठजोड़ ने ऐसा माहौल बना दिया है जहाँ सही जानकारी की कमी और नफ़रत से भरी झूठी ख़बरों का जाल फैला हुआ है। उन्होंने फ़ासीवादी प्रचार, जनवादी आवाज़ों के दमन, और सूचना के विकृतिकरण जैसे मुद्दों पर भी विशेष रूप से अपनी बात रखी।

एक अन्य छात्र कार्यकर्ता केशव छात्र-युवा आन्दोलन, अलग-अलग देशों में वहाँ के हुक्मरानों के विरुद्ध संघर्ष तथा फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष के समर्थन में विश्व स्तर पर उठ रही आवाज़ों पर बात की। उन्होंने कहा कि इन आन्दोलनों ने जनता और सरकार के अन्तरविरोध को और तीखा किया है और जनसमूहों की भागीदारी को कई स्तरों पर बढ़ाया है, क्योंकि अब उनके शासक वर्गों के असली चेहरे उजागर हो रहे हैं।

फ़िलिस्तीन के समर्थन में एकजुट भारतीय जन (IPSP) की ओर से प्रियम्वदा ने भारत में बीडीएस (BDS) और आईपीएसपी के कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बीडीएस आन्दोलन के इतिहास, उसकी महत्ता, प्रभावशीलता, और फ़िलिस्तीन के समर्थन में जनआन्दोलन के निर्माण की दिशा में आईपीएसपी सदस्यों की प्रतिबद्धता के बारे में विस्तार से बताया।

इस सभा में कई न्यायप्रिय और जनपक्षधर कार्यकर्ता एवं प्रोफेसर भी शामिल हुए और उन्होंने सभा को सम्बोधित किया। दिल्ली विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर नन्दिता नारायण ने फ़िलिस्तीनी जनता पर हो रहे अत्याचारों पर रोशनी डाली।
मधुप्रसाद, जो दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर हैं, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि फ़िलिस्तीन के समर्थन में लगातार बोलते रहना और खड़ा रहना बेहद ज़रूरी है — ख़ासकर भारत जैसे देश में, जिसने स्वयं ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन के दमन को झेला है।

IPSP के सदस्य और अन्य सभी लोगों ने कहा कि यह लड़ाई केवल ज़ायनवादी साम्राज्यवादी शक्तियों के ख़िलाफ़ ही नहीं, बल्कि उस फ़ासीवादी भारतीय सरकार के ख़िलाफ़ भी जारी रहेगी, जो इस नरसंहार में सहायक है।

फ़िलिस्तीन के संघर्षशील लोगों के समर्थन में!
फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष ज़िन्दाबाद
 यह विरोध प्रदर्शन इज़रायली ताक़तों द्वारा सुमुद फ्लोटिला जहाज के लोगों के अमानवीय तरीक़े से बन्धक बनाये जाने के ख़िलाफ़ भी किया गया। यह विरोध प्रदर्शन देश के अलग-अलग शहरों मसलन हैदराबाद, पटना, विशाखापट्टन, विजयवाड़ा, पुणे, और नई दिल्ली में किया गया। दिल्ली में लोग जन्तर-मन्तर पर इकट्ठा हुए। फ़िलिस्तीनी मुक्ति के संघर्ष के समर्थन में अलग-अलग कलाकार, लेखक, पत्रकार, छात्र, प्रोफ़ेसर और इंसाफ़पसन्द लोगों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। इस प्रदर्शन में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी, दिशा छात्र संगठन, प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग और नौजवान भारत सभा जैसे राजनीतिक दल और छात्र संगठन मौजूद थे।

प्रदर्शन के दौरान अलग-अलग कलाकृतियाँ, प्लेकार्ड और पोस्टरों के ज़रिये गाज़ा में जारी नरसंहार को दिखाया गया। जन्तर-मन्तर पर गीतों और नारों की गूंज ने भारत के हुक्मरानों को यह सन्देश पहुँचा दिया कि भारत की अवाम फ़िलिस्तीनी जनता के ख़ून से सने उन व्यापारिक सौदों कको ख़ारिज करती है, और हम संघर्षरत फ़िलीस्तीनी जनता के साथ खड़े हैं।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से शिवानी कौल ने ग़ाज़ा में पिछले दो वर्षों से चल रहे नरसंहार पर बात की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ज़ायनवादी इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनी जनता पर थोपा गया यह युद्ध यहूदियों और मुसलमानों के बीच कोई धार्मिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह फ़िलिस्तीनी जनता का मुक्ति-संघर्ष है, जिनपर पर हत्यारे ज़ायनवादी उपनिवेशवादी इज़रायली राज्य ने अपने हितों के लिए पश्चिमी साम्राज्यवादी ताक़तों के दम पर बेरहमी से कब्ज़ा कर लिया है।

आगे उन्होंने यह बात की कि इस नरसंहार ने तथाकथित “विश्व नेताओं” का असली चेहरा सामने ला दिया है, जो लगातार फ़िलिस्तीन के बच्चों और जनता की सामूहिक हत्या को जायज़ ठहराने में लगा रहे हैं। उन्होंने भारत की मौजूदा स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा कि एक समय में हमारा देश 1948 में फ़िलिस्तीन के समर्थन में खड़ा हुआ था और इज़रायल जैसे देश के गठन के खिलाफ़ वोट दिया था, आज वही देश ज़ायनवादी इज़रायल के साथ खुले तौर पर गठजोड़ कर रहा है।

फ़ासीवादी मोदी सरकार को इससे न सिर्फ़ व्यापारिक सौदों के ज़रिये फ़ायदा मिलता है, बल्कि वह इस संघर्ष को धार्मिक टकराव के रूप में पेशकर और इज़रायल के पक्ष में खड़ी होकर अपने मुस्लिम-विरोधी फ़ासीवादी प्रचार को भी मज़बूत करने का काम करती है।

शिवानी ने आगे बात रखी कि आज फ़िलिस्तीन के समर्थन में खड़ा होना दुनिया में और हमारे अपने देश में हो रहे हर अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ खड़ा होना है। उन्होंने कहा कि केवल एक जनान्दोलन जो आज यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों में आग की तरह फैल रहा है, वही इस नरसंहार को समाप्त कर सकता है। एक इंसाफपसन्द इंसान के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भारत में भी ऐसा ही जुझारू जनान्दोलन खड़ा करें।

आगे अलग-अलग वक्ताओं ने अपनी बात रखी। चिरांशु (एक राजनीतिक कार्यकर्ता) ने ज़ायनवाद के इतिहास पर बात की और बताया कि 1948 से पहले इज़रायल नाम का कोई देश अस्तित्व में नहीं था। जिस भूमि के टुकड़े को मात्र एक कागज़ पर हस्ताक्षर करके ज़ायनवादियों ताक़तों को सौंप दिया गया, वहाँ पहले से ही विभिन्न धर्मों के फ़िलिस्तीनी लोग बसते थे। उन्होंने फ़िलिस्तीन के इतिहास और उसपर हुए इज़रायली क़ब्ज़े के इतिहास के बारे में भी बात रखी।

आगे उन्होंने भारत की वर्तमान स्थिति और इस मुद्दे पर हमारे देश की चुप्पी के कारणों पर बात की। उन्होंने कहा कि फ़ासीवादी और ज़ायनवादी शक्तियों के इस अपवित्र गठजोड़ ने ऐसा माहौल बना दिया है जहाँ सही जानकारी की कमी और नफ़रत से भरी झूठी ख़बरों का जाल फैला हुआ है। उन्होंने फ़ासीवादी प्रचार, जनवादी आवाज़ों के दमन, और सूचना के विकृतिकरण जैसे मुद्दों पर भी विशेष रूप से अपनी बात रखी।

एक अन्य छात्र कार्यकर्ता केशव छात्र-युवा आन्दोलन, अलग-अलग देशों में वहाँ के हुक्मरानों के विरुद्ध संघर्ष तथा फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष के समर्थन में विश्व स्तर पर उठ रही आवाज़ों पर बात की। उन्होंने कहा कि इन आन्दोलनों ने जनता और सरकार के अन्तरविरोध को और तीखा किया है और जनसमूहों की भागीदारी को कई स्तरों पर बढ़ाया है, क्योंकि अब उनके शासक वर्गों के असली चेहरे उजागर हो रहे हैं।

फ़िलिस्तीन के समर्थन में एकजुट भारतीय जन (IPSP) की ओर से प्रियम्वदा ने भारत में बीडीएस (BDS) और आईपीएसपी के कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बीडीएस आन्दोलन के इतिहास, उसकी महत्ता, प्रभावशीलता, और फ़िलिस्तीन के समर्थन में जनआन्दोलन के निर्माण की दिशा में आईपीएसपी सदस्यों की प्रतिबद्धता के बारे में विस्तार से बताया।

इस सभा में कई न्यायप्रिय और जनपक्षधर कार्यकर्ता एवं प्रोफेसर भी शामिल हुए और उन्होंने सभा को सम्बोधित किया। दिल्ली विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर नन्दिता नारायण ने फ़िलिस्तीनी जनता पर हो रहे अत्याचारों पर रोशनी डाली।
मधुप्रसाद, जो दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर हैं, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि फ़िलिस्तीन के समर्थन में लगातार बोलते रहना और खड़ा रहना बेहद ज़रूरी है — ख़ासकर भारत जैसे देश में, जिसने स्वयं ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन के दमन को झेला है।

IPSP के सदस्य और अन्य सभी लोगों ने कहा कि यह लड़ाई केवल ज़ायनवादी साम्राज्यवादी शक्तियों के ख़िलाफ़ ही नहीं, बल्कि उस फ़ासीवादी भारतीय सरकार के ख़िलाफ़ भी जारी रहेगी, जो इस नरसंहार में सहायक है।


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